मॉं मनसा देवी उत्तराखण्ड की पावन नगरी हरिद्वार में शिवालिक पहाड़ी पर विराजमान हैं जिनके दर्शन के लिए हर वर्ष लाखो श्रद्धालू पहुँचते हैं। मॉं से मन्नत मॉंगते हैं और आस्था एक एक पवित्र धागा बॉंधते हैं और मन्नत पूरी होने पर उस धागे को खोलते हैं। पूरे हरिद्वार से माता का मन्दिर उँची चोटी पर दिखाई देता है। माँँ मनसा देवी के मन्दिर का रास्ता हर की पौड़ी से जाता है जहॉं से करीब 3 किमी की पैदल यात्रा या फिर रोपवे से जा सकते हैं।
मनसा देवी मंदिर कैसे पहुंचे ? – How to Reach Mansa Devi Temple Haridwar In Hindi.
हरिद्वार में मां मनसा देवी मंदिर जाने के लिए देश के सभी राज्यों से ट्रेन बस और हवाई जहाज से आसानी से पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से हरिद्वार की दूरी करीब 242 किलोमीटर, लखनऊ से हरिद्वार की दूरी करीब 720 किलोमीटर जबकि मुंबई से हरिद्वार की दूरी 1615 किलोमीटर है।
हरिद्वार रेलवे स्टेशन से मात्र 1.5 किमी. की दूरी पर हर की पौड़ी के पास मां मनसा देवी के पहाड़ के ट्रेकिंग शुरू होती है। यहां से मंदिर की करीब 3 किलोमीटर की ट्रेकिंग करनी पड़ती है जिसमें करीब 1 घंटे का समय लग जाता है।
रोपवे – मनसा देवी जाने के लिए रोपवे या उड़न खटोला की सुविधा भी उपलब्ध है। जहां से ट्रेकिंग शुरू होती है वहीं से रोपवे की सुविधा उपलब्ध है यहां से मनसा देवी मंदिर जाने और आने के लिए रोपवे का किराया 122 रुपया है जबकि एक तरफ का किराया 85 रुपया है।
मनसा देवी मंदिर का इतिहास – History Of Mansa Devi Temple.
मां मनसा देवी को भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की सबसे छोटी पुत्री माना जाता है कहा जाता है कि इनका जन्म मस्तक से हुआ था इसी कारण का नाम मनसा पड़ा। मां मनसा देवी को उसके देवी के रूप में भी जाना जाता है कहा जाता है कि भगवान शिव के हलाहल विष के पीने के बाद मनसा देवी ने ही बचाया था। विष्णु पुराण में मनसा देवी को नाग कन्या के रूप में भी बताया गया है।
मनसा देवी से जुड़ी मान्यताएं – Story of Maa Mansa Devi
मनसा देवी जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी। हरिद्वार में हर वर्ष लाखों भक्त अपनी मनोकामना लेकर माता के मंदिर में पहुंचते हैं और इन के प्रांगण में मौजूद वृक्ष में मन्नत का धागा मांगते हैं मनोकामना पूर्ण होने के बाद यह धागा खोला जाता है। यह मंदिर सुबह 8:00 बजे से शाम को 5:00 बजे तक खुला रहता है लेकिन दोपहर को 12:00 से 2:00 के बीच में कपाट बंद कर दिए जाते हैं इस समय माता का शृंगार और भोग किया जाता है।
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